Search This Blog

Tuesday, June 23, 2020

जगन्नाथ मंदिर का अनसुना रहस्य

जगन्नाथ मन्दिर का अनसुना रहस्य

राजा इंद्रदमन जगन्नाथ मंदिर निर्माण के लिए अथक प्रयास कर चुका था लेकिन जगन्नाथ मंदिर नहीं बन पा रहा था। कुछ दिन पहले ही राजा इन्द्रदमन के स्वप्न में श्री कृष्ण जी आये थे और कहा था कि राजन आप समुद्र किनारे एक मंदिर बनवाओ जिसमें मूर्ति पूजा नहीं होनी चाहिये बल्कि आप मंदिर में सिर्फ एक संत नियुक्त करें, जो कि दर्शकों को गीता जी का पाठ सुनाया करेगा। श्री कृष्ण जी की आज्ञा पालन हेतु राजा इन्द्रदमन ने पांच बार मन्दिर बनवाया लेकिन हर बार समुद्र तीव्र वेग से उफ़न कर आता और अपने प्रतिशोध में जगन्नाथ मन्दिर को बहा ले जाता। त्रेतायुग में जब विष्णु जी श्री राम रूप में अवतरित थे तब श्री राम की पत्नी सीता को रावण ने चुरा लिया था और लंका तक पहुंचने के लिए श्री राम को समुद्र ने रास्ता नहीं दिया तो श्री राम ने समुद्र को धमकाया था उसी का प्रतिशोध लेने के लिए समुद्र राजा इन्द्रदमन द्वारा बनाये गए जगन्नाथ मंदिर को नहीं बनने दे रहा था। इसी बात पर राजा निराश, हताश व काफी चिंतित था। राजा ने कई बार श्री कृष्ण जी से समुद्र को रोकने की विनती की लेकिन श्री कृष्ण जी भी समुद्र को रोकने में असफल रहे। धीरे धीरे राजा का खजाना भी खत्म होने लगा और राजन ने मंदिर नहीं बनवाने का निर्णय लिया। कबीर परमात्मा चारों युगों में अलग-अलग नाम से आते हैं। द्वापर युग में भी कबीर परमात्मा करुणामय ऋषि नाम से अवतरित थे।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कबीर जी ने जगन्नाथ मंदिर तैयार करवाया
एक दिन कबीर परमात्मा संत रुप में राजा के पास आये और कहा कि हे राजन! अब तुम मंदिर बनवाओ तुम्हें सफलता अवश्य मिलेगी, मैं तुम्हारे साथ हूँ। राजा ने कहा कि हे संत जी, जब भगवान श्री कृष्ण जी समुद्र के तीव्र वेग को नहीं रोक पाये तो आप क्या कर पाओगे?
कबीर परमेश्वर ने उत्तर दिया कि मुझे उस पूर्ण परमेश्वर की शक्ति प्राप्त है जिसने असंख्य ब्रह्मांडों की रचना की है तथा वह समरथ प्रभु असंभव को भी संभव कर सकता है। वह सर्व शक्तिमान प्रभु ही असंभव को संभव करने का सामर्थ्य रखता है, यह अन्य देवता नहीं।
लेकिन राजा ने कबीर जी की बात नहीं मानी। कबीर जी ने अपना पता बताते हुए कहा कि राजन जब भी जगन्नाथ मंदिर बनवाने का मन बने तो मेरे पास आ जाना। कुछ दिन पश्चात श्री कृष्ण जी ने राजा को स्वपन में कहा की वह संत कोई साधारण नहीं है। वह सर्व शक्तिमान है वह संत जगन्नाथ मंदिर अवश्य बनवा देगा, उससे याचना करो। फिर इंद्रदमन ने कबीर जी से विनती की और कबीर परमात्मा ने जगन्नाथ मंदिर निर्माण शुरु करवा दिया। समुंद्र मंदिर तोड़ने के लिए बड़े क्रोध से उफनकर आता और कबीर जी की शक्ति के सामने विवश होकर थम जाता। समुद्र बार-बार मंदिर तोड़ने की कोशिश करता लेकिन कबीर परमात्मा अपना हाथ ऊपर को उठाते और अपनी शक्ति से समुंद्र को रोक देते। समुद्र कबीर जी से याचना करने लगा कि मैं आपके समक्ष निर्बल हूं, आप से नहीं जीत सकता। लेकिन मैं अपना प्रतिशोध कैसे लूं कृपया कुछ उपाय बताएं? तब परमेश्वर कबीर जी ने द्वारिकापुरी को डुबोकर अपना गुस्सा शांत करने का विकल्प समुद्र को बताया। द्वारिका उस समय खाली पड़ी थी।

जिस स्थान पर कबीर परमात्मा ने समुंद्र को रोका था वहाँ पर आज भी एक गुम्बद यादगार के रूप में स्थापित है जहां वर्तमान में महंत रहता है।

जगन्नाथ मंदिर में मूर्तियों की स्थापना क्यों हुई?

इसी दौरान नाथ परंपरा के एक सिद्ध महात्मा वहां आये और राजा से कहा कि मूर्ति बिना मंदिर कैसा? आप चंदन की लकड़ी की मूर्ति बनाओ और मंदिर में स्थापित करो। राजा ने तीन मूर्तियां बनवाई जो बार-बार टूट जाती थी। इस तरह तीन बार मूर्ति बनवाई और तीनों बार मूर्तिया खंड हो गई तो राजा फिर से चिंतित हुआ। सुबह जब राजा दरबार में पहुँचा तो कबीर परमात्मा एक मूर्तिकार के रुप में आये और राजा से कहा कि मुझे 60 साल का अनुभव है, मैं मूर्तियां बनाउंगा तो मूर्तिया नहीं टूटेंगीं। मुझे एक अलग से कमरा दे दो जिसमें मैं मूर्तियां बनाउंगा और जब तक मूर्तियां नहीं बन जाती कोई भी कमरा ना खोले। राजा ने वैसा ही किया।

जगन्नाथ मंदिर में मूर्तियों के हाथ-पाव की उंगलियां अधूरी क्यो रह गई
उधर कुछ दिन बाद वह नाथ जी फिर आए और उनके पूछने पर राजा ने पूरा वृतांत बताया तो नाथ जी ने कहा कि पिछले 10-12 दिन से वह कारीगर मूर्ति बना रहा है, कहीं गलत मूर्तियां ना बना दे। हमें मूर्तियों को देखना चाहिये, यह सोचकर कमरे में दाखिल हुए तो कबीर परमात्मा गायब हो गये। तीनों मूर्तियां बन चुकी थी लेकिन बीच में ही व्यवधान उत्पन्न होने से तीनों मूर्तियों के हाथ और पांव की ऊँगलियां अधूरी रह गई। इस कारण मंदिर में बगैर ऊँगलियों वाली मूर्तियां ही रखी गईं।

जगन्नाथ मंदिर छुआछात से मुक्त हुआ और मूर्तियां कबीर जी के रूप में बदल गई
कुछ समय उपरांत जगन्नाथ पुरी मंदिर में मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा करने के लिए कुछ पंडित मंदिर में पहुँचे। मंदिर के द्वार की ओर मुंह करके कबीर परमात्मा खड़े थे। पंडित ने कबीर परमात्मा को अछूत कहते हुए धक्का दे दिया और मंदिर में प्रवेश किया। अंदर जाकर देखा तो हर मूर्ति कबीर परमात्मा के स्वरुप मे तब्दील हो गई थी और यह देखकर पंडित हैरान थे। बाद में उस पंडित को कोढ़ हो गया जिसने कबीर परमात्मा को धक्का देकर अछूत कहा था। लेकिन दयालु कबीर परमात्मा जी ने बाद में उसे ठीक कर दिया। उसके बाद जगन्नाथ पुरी मंदिर में दोबारा छुआछात नहीं हुई।

परमेश्वर कबीर जी ने सिद्ध कर दिया कि उनसे अधिक समर्थ असंख्य ब्रह्मांडों में कोई नहीं
कबीर परमात्मा ने यहाँ सिद्ध करके बताया कि वह समर्थ है और ब्रह्मा, विष्णु, महेश से ऊपर की शक्ति है। कबीर परमात्मा चारों युग में सतलोक से गति करके आते हैं सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेता में मुनिंद्र नाम से, द्वापर में करुणामय नाम से और कलयुग में अपने असली नाम कबीर (कविर्देव) नाम से आते हैं और यही सत्य वर्तमान में भी बंदीछोड़ सतगुरु रामपालजी महाराज ने बताया है कि आत्मकल्याण तो केवल पवित्र गीता जी व पवित्र वेदों में वर्णित तथा परमेश्वर कबीर के द्वारा दिये गये तत्वज्ञान के अनुसार भक्ति साधना करने मात्र से ही सम्भव है, अन्यथा शास्त्र विरुद्ध साधना होने से मानव जीवन व्यर्थ हो जाएगा।
श्री जगन्नाथ के मन्दिर में प्रभु कृष्ण के आदेशानुसार पवित्र गीता जी के ज्ञान की महिमा का गुणगान होना ही श्रेयकर है तथा जैसा श्रीमद्भगवत गीता जी में भक्ति विधि है उसी प्रकार साधना करने मात्र से ही आत्म कल्याण संभव है, अन्यथा जगन्नाथ जी के दर्शन मात्र या खिचड़ी प्रसाद खाने मात्र से कोई लाभ नहीं क्योंकि यह क्रिया श्री गीता जी में वर्णित न होने से शास्त्र विरुद्ध हुई जिसका प्रमाण अध्याय 16 मंत्र 23, 24 में है।



JAGANNATH 👇 


 अधिक जानकारी के लिए पढ़िए पुस्तक ज्ञान गंगा
          

                    पुस्तक link👇👇


https://www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_hindi.pdf
   

  पूरा blog पड़ने के लिए धन्यवाद.........👌

Monday, June 1, 2020

कबीर प्रकट दिवस 2020: परमेश्वर कबीर साहेब जी की लीलाएं


कबीर प्रकट दिवस 2020: परमेश्वर कबीर साहेब जी की लीलाएं 

भारत एक ऐसा देश है जिसमे अनेकों ऋषिओं और मुनियों का जन्म हुआ। इस कारण भारत को ऋषियों, मुनियों की धरती भी कहा जाता है। उन्हीं में से एक हैं कबीर साहेब। इतिहास के स्वर्ण काल यानी भक्तिकाल के महत्वपूर्ण सन्त। जी हाँ वही कबीर साहेब जो काशी में जुलाहे के रूप में काम करते थे। कबीर साहेब केवल सन्त मात्र नहीं बल्कि पूर्ण परमात्मा हैं। कबीर साहेब के दोहे तो आपने पढ़े ही होंगे, लेकिन आज हम आपको कबीर साहेब जी के जीवन और लीलाओं के बारे में बतायेंगे।

कबीर जी का जन्म कब और कहां हुआ था?

वैसे तो हमारे शास्त्रों में प्रमाण है कि कबीर साहेब चारों युगों में आते हैं। जैसे सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेता युग में मुनीन्द्र नाम से, द्वापर युग में करुणामय नाम से और कलियुग में वास्तविक नाम कबीर (कविर्देव) से वे इस मृत मंडल में जीवों का उद्धार करने आते हैं। परमेश्वर कबीर (कविर्देव) वि.सं. 1455 (सन् 1398) ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को लहरतारा तालाब काशी (बनारस) में एक कमल के फूल पर ब्रह्ममहूर्त में एक नवजात शिशु के रूप में प्रकट हुए।
जिनको नीरू-नीमा नामक जुलाहा दम्पति उठाकर अपने घर ले गए। नीरू और नीमा वास्तव में अच्छे और ईश्वर से डरने वाले ब्राह्मण थे जिनकी अच्छाई नकली और आडम्बरी ब्राम्हणों से सहन नहीं हई और इसका फायदा मुस्लिमो ने उठाया और ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन कर दिया।

कबीर प्रकट दिवस 2020 में कब है?

हर वर्ष ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को कबीर प्रकट दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष 5 जून को इसे मनायेंगे। यही नहीं इस दिन कबीर साहेब की लीलाओं को भी याद किया जाता है। उनकी शिक्षाओं पर चलना आज मानवजाति के लिए बहुत आवश्यक है।

कबीर साहेब जी के दोहे हिंदी में

वैसे तो हमें कबीर साहेब के दोहे कहीं न कहीं लिखे मिल ही जाते हैं, आपने देखा होगा स्कूल, कॉलेज आदि की दीवारों पर कबीर साहेब के दोहे लिखे होते हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि कबीर साहेब के दोहों में ज़िंदगी के हर पहलू को बहुत खुबसूरती से पेश किया गया है। उनमे से कुछ दोहे:-

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय |

कबीर परमेश्वर जी
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ||

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय ||

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप ,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप ||

कबीर साहेब की लीलाएं
कबीर साहेब आज से तकरीबन 600 वर्ष पहले इस मृत लोक में आये थे। वैसे तो वह हर युग में आते हैं, लेकिन कलयुग में अपने वास्तविक नाम कबीर से आये थे। उस वक़्त न तो संचार के साधन थे, न कोई परिवहन होते थे आपको यह जानकर हैरानी होगी कि फिर भी उस वक़्त उनके 64 लाख शिष्य हुए थे । अब आप सोच रहे होंगे कैसे? तो चलिए हम आपको बताते हैं उन्होंने यह कैसे किया।

कबीर साहेब का कमल के फूल पर प्रकट होना
सबसे पहले तो उनका लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर प्रकट होना ही अपने आप में एक हैरानी की बात है। कमल के पुष्प पर वेदों के अनुसार वे अपने वास्तविक प्रकाश को कम करके आए।

कवांरी गाय का दूध पीने की लीला
sant-garib-das-baba-jinda-cow-milk

वेदों में लिखा है कि परमेश्वर जब अवतार लेता है तो कवांरी गाय का दूध पीता है। कबीर साहेब को पाकर नीरू नीमा बड़े ही खुश थे लेकिन जब लगभग 23 दिन तक बालक रूपी कबीर साहेब ने कोई आहार नहीं किया तो नीमा ने रोरो कर बुरा हाल कर लिया। ये दम्पत्ति शिवभक्त थे इन्होंने अपने इष्ट देव को याद किया। उधर शिव जी के भीतर कबीर साहेब ने प्रेरणा की और वे साधु रूप में घर आये। नीरू नीमा को उन्होंने कुंवारी गाय लाने को कहा और फिर वह दूध कबीर साहेब ने पिया।

कबीर साहेब का नामकरण

सारा काशी कबीर साहेब सरीखे सुंदर सलोने बालक को देखने उमड़ आया। ऐसा बालक कहीं न देखा था। वह घड़ी आई जब कबीर साहेब का नामकरण होना था । काज़ी अपनी किताबें ले आये और अपने तरीके से नाम खोजने लगे। पुस्तक के सारे अक्षर कबीर कबीर हो गए और तब कबीर साहेब ने कहा कि “मैं ही अल्लाहु अकबर कबीर हूँ। मेरा नाम कबीर होगा।” और इस तरह से कबीर साहेब का नामकरण उन्होंने स्वयं किया।

सुन्नत संस्कार की लीला

जैसा कि हम बता चुके कि नीरू और नीमा का ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन मुस्लिम धर्म मे किया गया। वह घड़ी आई जब काज़ी कबीर साहेब के सुन्नत संस्कार के लिए आये। सुन्नत संस्कार के समय कबीर साहेब ने कई लिंग एकसाथ दिखा दिए। और उसी बालक रूप में कहा कि इस्लाम मे तो एक लिंग का सुन्नत होता है आप किसका करोगे? बस इतने में काज़ी डरकर भाग खड़े हुए।

काटी हुई गाय को जिंदा करना

Divine Play of Lord Kabir
सिकन्दर लोधी ने शेख तकी के कहने पर एक गर्भवती गाय काटी और कबीर साहेब को बुलाकर कहा कि आप इसे जिंदा कर दो तो हम मान लेंगे कि आप अल्लाह हैं। कबीर साहेब ने तुरंत ही वह गाय बछड़े सहित जिंदा कर दी और माता स्वरूप गाय न काटने के लिए कहा।

दिल्ली के राजा सिकन्दर लोधी के जलन का रोग ठीक करना

एक बार दिल्ली के राजा सिकन्दर लोधी को जलन का रोग हो गया, सभी काज़ी मुलाओं ने कोशिश की लेकिन ठीक नहीं हुआ। सिकन्दर लोधी काशी के नरेश वीर सिंह बघेल को साथ लेकर कबीर जी से मिलने पहुँच गए। रामानन्द जी ने उन्हें देखकर टिप्पणी की तो सिकन्दर लोधी ने तलवार से गुस्से में रामानंद जी की गर्दन काट डाली।

इतने में कबीर साहेब भी आ गए, कबीर साहेब को देखते ही वीर सिंह बघेल उनको दंडवत प्रणाम करने लगा तो उसको देखकर सिकंदर लोधी ने भी मुकुट समेत प्रणाम किया, जब कबीर साहेब ने दोनों के सिर पर आशीर्वाद के लिए हाथ रखा तो सिकन्दर लोधी का जलन रोग खत्म हो गया। सिकन्दर लोधी इस चमत्कार को देखकर फूट- फूट कर रो पढ़ा।

रामानंद जी को जीवित करना
कबीर साहेब कुटिया के अंदर गए, रामानंद जी का शव देखा तो सिर्फ इतना ही कहा था कि गुरुदेव उठिए आरती का समय हो गया। कबीर साहेब के इतना कहते ही रामानंद जी धड़ सर से जुड़ गया और रामानंद जी जीवित हो गए। इस चमत्कार को देखकर सभी हैरान हो गए, सिकंदर लोधी ने कबीर साहेब से नाम-दीक्षा ले ली।

कमाल को जीवित करना

Divine Play of Lord Kabir
जब सिकंदर लोधी दिल्ली पहुंचा तो उसने काशी में हुए चमत्कार के बारे में अपने धर्म गुरु शेखतकी को बताया तो वह ईर्ष्या की आग में जल उठा। उसने यह शर्त रख दी कि यदि वह सच में अल्लाह का रसूल है तो किसी मुर्दे को जिंदा करके दिखाये। जब यह बात कबीर साहेब को पता चली तो उन्होंने कहा उन्हें मंजूर है। सभी नदी किनारे पहुँच गए , अभी थोड़ा ही समय हुआ था कि सबने देखा किसी लड़के का मृतक शव पानी मे बहता हुआ आ रहा था। कबीर साहेब ने वहाँ किनारे पर खड़े होकर सिर्फ अपने वचन से ही उस लड़के को जीवित कर दिया। सबने कहा कबीर साहेब जी ने कमाल कर दिया तो लड़के का नाम भी कमाल रख दिया।

कमाली को जीवित करना

लेकिन इससे भी शेखतकी को संतुष्टि नहीं हुई, उसने दूसरी शर्त रख दी कि अगर कबीर सच में अल्लाह की जात है तो मेरी कब्र में दफन बेटी को जिंदा करके दिखाये। कबीर साहेब ने वो भी मान ली, सिकन्दर लोधी ने सभी तरफ मुनादी करवा दी कि कबीर साहेब शेखतकी की बेटी को जिंदा करेंगे। कबीर साहेब ने निर्धारित समय पर लड़की को अपनी वचन शक्ति से शेखतकी की बेटी को जिंदा कर दिया। सभी कबीर परमात्मा की जय जय कार करने लगे। उस लड़की ने अपने पिछले जन्मों के बारे में और कबीर साहेब के बारे में बताया। उसका नाम कमाली रख दिया गया। बहुत से लोगों ने कबीर की शरण ग्रहण की।

उबलते कड़ाहे में संत कबीर साहेब को डालना
कबीर जी की लोकप्रियता को देखकर शेखतकी ईर्ष्या की आग में जलने लगा। उसने फिर कहा कि कबीर साहेब को उबलते तेल के कढ़ाए में डाल दो, अगर बच गए तो में मान लूंगा कि यह अल्लाह है। जैसे-जैसे शेखतकी कहता गया सिकन्दर लोधी वैसे ही करता गया। कबीर साहेब उबलते तेल के कड़ाहे में बैठ गए। सबने देखा कबीर जी ऐसे बैठे थे जैसे तेल ठण्डा हो। तेल ठंडा है या गर्म ये देखने के लिए सिकंदर लोधी ने अपनी उंगली डाली तो वह पूरी तरह जल गई। सभी श्रोता बैठे यह सब देख रहे थे, सभी ने कबीर साहेब की जय जय कार की। उस वक़्त बहुत से लोगों ने कबीर भगवान से दीक्षा ग्रहण की।

परमेश्वर कबीर जी द्वारा काशी शहर में धर्मभण्डारा

Chhath Puja 2020

पूजा पर जानिए यथार्थ भक्ति और ज्ञान के बारे में पूजा 2020: वैसे तो भारत में बहुत से पर्व मनाये जाते हैं, उनमें छठ पूजा सूर्योपासना का एक लोक...