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Friday, November 20, 2020

Chhath Puja 2020

पूजा पर जानिए यथार्थ भक्ति और ज्ञान के बारे में



पूजा 2020: वैसे तो भारत में बहुत से पर्व मनाये जाते हैं, उनमें छठ पूजा सूर्योपासना का एक लोकपर्व है। इन पर्वों से भारत के लोगों की धार्मिक भावनाएं जुड़ी होती हैं। इसीलिए वह हर पर्व बहुत उत्साह से मनाते हैं। छठ पूजा एक ऐसा पर्व है ,जो मुख्यरूप से बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तरप्रदेश, नेपाल के निवासियों तथा विश्व के अन्य हिस्सों में फैले हुए प्रवासी भारतीयों के द्वारा विश्वभर में मनाया जाता है। यह पर्व कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला एक पावन त्यौहार है। शुक्ल पक्ष के षष्ठी को शुरू होने वाले इस पर्व को छठ पूजा, सूर्य षष्ठी और डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है।

1 छठ पूजा 2020 Date

2 छठ पूजा के प्रकार

3 छठ पूजा का त्यौहार कैसे मनाया जाता है?

3.1 पहला दिन

3.2 दूसरा दिन

3.3 तीसरा दिन

4 छठ पूजा 2020: पौराणिक कथाओं के अनुसार

5 छठ पूजा से जुड़ी कथा (Chhath Puja Story in Hindi )

6 छठ पूजा 2020 पर जानिए यथार्थ ज्ञान के बारे में

7 पूर्ण संत की पहचान हमारे पवित्र सद्ग्रंथों में

छठ पूजा 2020 Date

चार दिवसीय इस त्यौहार की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल की सप्तमी को समाप्त हो जाती है। इस वर्ष यह त्यौहार निम्न तिथियों को मनाई जाएगा


18Nov- नहाय खाय

19Nov-खरना या लोहंडा

20Nov-संध्या अर्घ्य

21Nov-उषा अर्घ्य

यह पर्व वैदिक काल से मनाया जा रहा है, यह पर्व बिहार के वैदिक आर्य संस्कृति को दर्शाता है। लेकिन वेदों मे ऐसे त्यौहार की कही गवाही नहीं है।


Thursday, November 12, 2020

आखिर क्यों मनाते हैं दिवाली

Satlok Place


क्यों और कैसे मनाते हैं दिवाली का त्यौहार ?  

दिवाली को त्यौहार रूप में कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाता है। दिवाली से दो दिन पहले धनतेरस (लक्ष्मी पूजन) और दो दिन बाद भैया दूज (भाई बहन का एक-दूसरे के प्रति प्रेम प्रदर्शन) का दिन मनाया जाता है। इस वर्ष दीपावली 14 नवंबर, 2020 को मनाई जाएगी।

कार्तिक अमावस्या

राम जी इस दिन अपनी धर्मपत्नी सीता जी को बारह वर्ष रावण की कैद में रहने के बाद वापिस अयोध्या लेकर लौटे थे। लंकापति रावण ने सीता का अपहरण कर लिया था। राम जी ने हनुमान जी द्वारा संधि प्रस्ताव भेज कर सीता जी को लौटाने को कहा था परंतु दुष्ट रावण न माना। तब राम जी ने वानर सेना की मदद और मुनिंदर ऋषि जी के आशीर्वाद से रावण को युद्ध में मारकर सीता को जीता था।

सीता को अयोध्या वापस लाने से पहले राम जी ने सीता की अग्निपरीक्षा ली थी जिसमें सीता जी पास हुई थीं।

यह त्रेतायुग की बात है जब राम जी सीता जी की परीक्षा लेकर अयोध्या लौटे थे तब तक वह दोनों चौदह बरस का वनवास भोग चुके थे। अयोध्या में उनके लौटने पर खुशी की लहर दौड़ पड़ी कि अयोध्या नगरी को अब उनका नरेश वापस मिलेगा। उनके घर लौटने की खुशी में नगरी को दीपों की रोशनी में जगमगा दिया गया था।

विष्णु जी, राम रूप में श्रापवश जन्मे थे

राम विष्णु जी के अवतार थे, जो नारद जी के श्रापवश धरती पर कर्म भोगने आए थे। नारद जी के श्रापवश विष्णु जी को त्रेतायुग में एक जीवन स्त्री वियोग में गुज़ारना था जबकि द्वापरयुग में विष्णु जी कृष्ण अवतार में आए थे, उनकी सोलह हज़ार रानियां थीं।

जब मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने तार तार की मर्यादा।

राम और सीता का जीवन सदा दुखों से भरा रहा। पहले विवाह होते ही राज पाट छोड़ कर वनवास भोगना पड़ा। जंगल में जानवरों का भय तो था ही, ऊपर से राक्षस रावण द्वारा सीता जी का अपहरण हुआ। लक्ष्मण जी ने भी विवाहित होते हुए अपने बड़े भाई के साथ वनवास भोगना स्वेच्छा से स्वीकार किया।

राम और सीता को अभी वनवास से लौटे दो ही बरस हुए थे कि धोबी और उसकी पत्नी के घरेलू झगड़े में धोबी ने अपनी बीवी को यह ताना मारा कि ,” मैं राम जैसा नहीं हूं जो अपनी पत्नी को बारह वर्ष रावण की कैद में रहने के बाद भी घर में रखे।”

धोबी का यह व्यंग्य राम जी के हृदय को छलनी कर गया और उन्होंने निश्चय किया कि वह अब लोगों के और व्यंग्य नहीं सुनेंगे और सीता जी का त्याग कर देंगे।

इस पृथ्वी पर किसी को भी राम जी द्वारा सीता जी को घर से निकालने का दुःख नहीं। राम जी भी क्रोध, अंहकार, मोह, लोभ के जाल से मुक्त नहीं थे। वह असली मर्यादा पुरुषोत्तम होते तो भरी रात में अपनी गर्भवती स्त्री को घर से नहीं निकाल देते।

सच तो ये है कि राम तीन लोक के मालिक हैं और इनकी बुद्धि का कंट्रोल इनके पिता काल के हाथों में है। वह जब चाहे इसे On और Off कर देता है। उदाहरण के लिए, राम भगवान होते हुए भी यह न जान पाए कि सीता कहां चली गई या उसे किसी ने उठा तो नहीं लिया ? सीता को रावण की कैद से छुड़ाने में कई करोड़ सैनिक, रावण के एक लाख पुत्र और सवा लाख रिश्तेदार भी मारे गए थे।

राम जी साधक की इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर सकते

राम जी भगवान कहलाते ज़रूर हैं परंतु इनकी शक्तियां बहुत सीमित हैं यह मरे हुए व्यक्ति तक को जीवित नहीं कर सकते जब युद्ध के समय लक्ष्मण मूर्छित (कौमा वाली स्थिति ) अवस्था में चले गए थे तो राम जी ने बहुत विलाप किया फिर हनुमान जी उड़ कर संजीवनी बूटी लाए और लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा हो पाई।

ब्रह्मा जी का पुजारी ब्रह्मा जी के लोक में तथा शिव जी का पुजारी शिव लोक में, विष्णु जी का पुजारी विष्णु लोक में तथा ब्रह्म काल का पुजारी ब्रह्मलोक में जाता है। गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में स्पष्ट किया है कि ब्रह्म लोक पर्यन्त सब लोकों में गए साधक जन्म-मरण में रहते हैं। वे पुनः लौटकर पृथ्वी के ऊपर आते हैं। गीता अध्याय 15 श्लोक 4 तथा अध्याय 18 श्लोक 62 वाली मुक्ति नहीं मिली जहाँ जाने के पश्चात् साधक फिर लौटकर संसार में नहीं आते। सनातन परम धाम तथा परम शांति उसी को प्राप्त होती है जिसका फिर जन्म कभी न हो, सदा युवा बना रहे, कभी मृत्यु नहीं हो। सब सुर यानि देवता तथा ऋषि-मुनि उपरोक्त प्रभुओं की पूजा (सेवा) करते हैं। इसलिए उनको मोक्ष प्राप्त नहीं होता। अधिक जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें पुस्तक “गीता तेरा ज्ञान अमृत”।

कबीर, हरि नाम विष्णु का होई। विष्णु विष्णु जपै जो कोई।। जो विष्णु को कर्ता बतलावै। कहो जीव कैसे मुक्ति फल पावै।। बहुत प्रीति से विष्णु ध्यावै। सो जीव विष्णु पुरी में जावै।। विष्णु पुरी में निर्भय नाहीं। फिर के डार देय भूमाहीं।।

जब मरे विष्णु मुरारि। कहाँ रहेंगे विष्णु पुजारी।।

यह फल विष्णु भक्ति का भाई। सतगुरू मिले तो मुक्ति पाई।।

मनमानी पूजा शास्त्र विरुद्ध है

सीता जी को निकालने के बाद अयोध्या को कभी भी दिए जला कर रोशन नहीं किया गया था। जब वह लौटे थे तो बम, फुलझड़ी, राकेट बम, अनार इत्यादि भी नहीं जलाए गए थे। न तो उपहारों का आदान-प्रदान किया गया था। वर्तमान समाज के लोग अपनी मनमानी पूजा कर रहे हैं। नकली दिवाली की खुशी का दावा ठोकते ठोकते समाज को उसने बीमारियों का घर बना दिया है। प्रतिवर्ष दिवाली पर जलाए जाने वाले बम पटाखे जानलेवा धुंआ उत्पन्न करते हैं जिससे बच्चों, बूढों और जवानों को दमे और सांस की घुटन जैसी बीमारियां हो जाती हैं। रावण का पुतला कभी नहीं जलाया गया था। फिर यह प्रतिवर्ष दिवाली मनाने और रावण फूंकने जैसी गलत परंपरा कहां से आई। हमारी भक्ति का आधार गीता, वेद, पुराण, ग्रंथ और शास्त्र होने चाहिए। किसी भी ग्रंथ में दिवाली और रावण दहन करना चाहिए, नहीं लिखा है। दिवाली वाले दिन आकाश में केवल धुंआ ही धुआं दिखाई देता है।

तो लोग दिवाली क्यों मना रहे हैं?

कार्तिक अमावस्या की वह काली रात अयोध्या के लिए खुशी का एकमात्र दिन था जब राम जी सीता माता संग अयोध्या लौटे थे। इसे त्यौहार का रूप रंग राम-सीता और अयोध्या वासियों ने नहीं दिया। दीवाली या अन्य कोई भी त्यौहार जो आज वर्तमान में मनाएं जा रहे हैं इनका लेना देना गीता, वेदों और अन्य ग्रंथों से नहीं हैं। यह सत्य कथा अवश्य है परंतु इसे त्यौहार रूप में मनाने से कोई लाभ नहीं। यह केवल मनोरंजन मात्र और यादगार के तौर पर मनाए जा रहे हैं। सच तो यह है कि राम जी और सीता का मिलन श्रापवश संभव ही नहीं था। राम जी सीता जी से मिलना चाहते थे परंतु सीता उनका मुख भी देखना नहीं चाहती थीं जिस कारण सीता धरती की गोद में समा गई और अंत में पश्चातापवश राम जी ने सरयू नदी में जल समाधि ली ।

https://youtu.be/9HEonXqZh1Y

कैसे हुई लक्ष्मी जी की उत्पत्ति?

पैंसठ वर्षीय पुष्पा जी से यह पूछने पर कि ,”आप दीवाली क्यों मनाते हैं! तो जवाब मिला इस दिन लक्ष्मी पूजन किया जाता है ताकि लक्ष्मी जी की कृपा हम पर बरसती रहे और इस दिन राम और सीता के घर लौटने कि भी हम खुशी मनाते हैं।”

काल ने जब दूसरी बार सागर मन्थन किया तो तीन कन्याऐं मिली। दुर्गा माता ने तीनों को बांट दिया। प्रकृति (दुर्गा) ने अपने ही अन्य तीन रूप (सावित्रा,लक्ष्मी तथा पार्वती) धारण किए तथा समुन्द्र में छुपा दी। सागर मन्थन के समय बाहर आ गई। वही प्रकृति तीन रूप हुई तथा भगवान ब्रह्मा को सावित्री, भगवान विष्णु को लक्ष्मी, भगवान शंकर को पार्वती पत्नी रूप में दी। तीनों ने भोग विलास किया, सुर तथा असुर दोनों पैदा हुए।

‘‘तीनों देवताओं तथा ब्रह्म साधना का फल‘‘

यदि आप विष्णु जी की भक्ति करते हो और उसी को कर्ता मानते हो तो आप विष्णु-विष्णु का नाम जाप करके विष्णु जी के लोक में चले जाओगे, अपना पुण्य समाप्त करके फिर पृथ्वी पर जन्म पाओगे। एक दिन विष्णु जी की भी मृत्यु होगी। इसलिए श्री विष्णु जी की भक्ति से गीता अध्याय 18 श्लोक 62 तथा अध्याय 15 श्लोक 4 वाली मुक्ति व सनातन स्थान प्राप्त नहीं हो सकता।

तीनों गुणों की भक्ति बिना सच्चे मंत्रों के व्यर्थ है।

ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव के उपासकों की भक्ति का कारण भगवान से केवल मांग और पूर्ति तक सीमित है। साधक भगवान से मांगते रहना चाहता है और बदले में आरती, गीत और गलत मंत्र जाप करता है। सच तो यह है कि न तो यह तीनों देवता असली भगवान हैं और न ही यह साधकों को बदले में कुछ दे सकते हैं। भगवान से हमें धन, संपत्ति, औलाद और घर नहीं मोक्ष की कामना करनी चाहिए।

पूर्ण परमात्मा राम भगवान का दादा है।

काल ज्योति निरंजन राम जी का पिता है और परमात्मा कबीर साहेब ज्योतिनिरंंजन काल के पिता हैं। काल कबीर साहेब जी की सत्रहवीं संतान है। काल श्राप वश हमें इस पृथ्वी लोक पर ले आया। दुर्गा इसकी पत्नी है और ब्रह्मा, विष्णु, शंकर इसके तीन पुत्र हैं यह पांचों मिलकर मनुष्य को यहां उलझाए रखते हैं। कभी त्यौहार मनवा कर तो कभी व्रत रखवा कर।

परमात्मा इन नकली त्यौहार मनाने वालों से कभी खुश नहीं होता।

सतभक्ति ही जीवन का सार है। त्रिगुण माया के उपासक अपने ईष्ट से केवल धन, संतान, ऊंची कोठी और माया ही चाहते हैं और इसी में अपना जीवन व्यर्थ गंवा जाते हैं। राम जी जो विष्णु जी के अवतार हैं, यह सतगुण हैं। इनका कार्य जीव को सदा माया और मोह में उलझाए रखना है। इनके चक्रव्यूह से वही बाहर निकल सकता है जो सतभक्ति करता है जो कबीर जी को पहचानता है और काल को जान जाता है।

यदि भगवान से लाभ लेना है तो उसकी विधि न्यारी और सीधी है, तत्वज्ञान प्राप्त करना और तत्वदर्शी संत की शरण में जाना। अवश्य पढ़ें पुस्तक “ज्ञान गंगा”।

परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि :-

तीन देव की जो करते भक्ति। उनकी कबहु ना होवै मुक्ति।।

भावार्थ :- परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि जो साधक भूलवश तीनों देवताओं रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण शिव की भक्ति करते हैं, उनकी कभी मुक्ति नहीं हो सकती। यही प्रमाण श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 में भी है। कहा है कि साधक त्रिगुण यानि तीनों देवताओं (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) को कर्ता मानकर उनकी भक्ति करते हैं। अन्य☝👬 किसी की बात सुनने को तैयार नहीं हैं। जिनका ज्ञान हरा जा चुका है यानि जिनकी अटूट आस्था इन्हीं तीनों देवताओं पर लगी है, वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए हैं, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म (बुरे कर्म) करने वाले मूर्ख हैं। गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि वे मेरी (काल ब्रह्म यानि ज्योति निरंजन की) भक्ति नहीं करते। उन देवताओं को मैंने कुछ शक्ति दे रखी है। परंतु इनकी पूजा करने वाले अल्पबुद्धियों (अज्ञानियों) की यह पूजा क्षणिक सुख देती है। स्वर्ग लोक को प्राप्त करके शीघ्र जन्म-मरण के चक्र में गिर जाते हैं।

ब्रह्मा, विष्णु, महेश और लक्ष्मी उपासकों को इनकी सही भक्ति विधि जाननी चाहिए। प्रत्येक मनुष्य को पूर्ण ब्रह्म परमात्मा कबीर साहेब जी द्वारा दी जाने वाली सतभक्ति करनी चाहिए। सतभक्ति मनुष्य को अज्ञान रुपी अंधकार से निकाल कर ज्ञान की रोशनी में ले जाएगी। असली दिवाली प्रत्येक मनुष्य को मनानी चाहिए क्योंकि कबीर साहेब जी संत रामपाल जी महाराज रूप में पृथ्वी पर उपस्थित हैं।

परमात्मा की सतभक्ति करने वालों के घर रोज़ सतभक्ति की दिवाली मनाई जाती है। इस दिवाली सपरिवार सत्संग देखिए साधना चैनल पर सांय 7:30-8:30 pm पर

Tuesday, June 23, 2020

जगन्नाथ मंदिर का अनसुना रहस्य

जगन्नाथ मन्दिर का अनसुना रहस्य

राजा इंद्रदमन जगन्नाथ मंदिर निर्माण के लिए अथक प्रयास कर चुका था लेकिन जगन्नाथ मंदिर नहीं बन पा रहा था। कुछ दिन पहले ही राजा इन्द्रदमन के स्वप्न में श्री कृष्ण जी आये थे और कहा था कि राजन आप समुद्र किनारे एक मंदिर बनवाओ जिसमें मूर्ति पूजा नहीं होनी चाहिये बल्कि आप मंदिर में सिर्फ एक संत नियुक्त करें, जो कि दर्शकों को गीता जी का पाठ सुनाया करेगा। श्री कृष्ण जी की आज्ञा पालन हेतु राजा इन्द्रदमन ने पांच बार मन्दिर बनवाया लेकिन हर बार समुद्र तीव्र वेग से उफ़न कर आता और अपने प्रतिशोध में जगन्नाथ मन्दिर को बहा ले जाता। त्रेतायुग में जब विष्णु जी श्री राम रूप में अवतरित थे तब श्री राम की पत्नी सीता को रावण ने चुरा लिया था और लंका तक पहुंचने के लिए श्री राम को समुद्र ने रास्ता नहीं दिया तो श्री राम ने समुद्र को धमकाया था उसी का प्रतिशोध लेने के लिए समुद्र राजा इन्द्रदमन द्वारा बनाये गए जगन्नाथ मंदिर को नहीं बनने दे रहा था। इसी बात पर राजा निराश, हताश व काफी चिंतित था। राजा ने कई बार श्री कृष्ण जी से समुद्र को रोकने की विनती की लेकिन श्री कृष्ण जी भी समुद्र को रोकने में असफल रहे। धीरे धीरे राजा का खजाना भी खत्म होने लगा और राजन ने मंदिर नहीं बनवाने का निर्णय लिया। कबीर परमात्मा चारों युगों में अलग-अलग नाम से आते हैं। द्वापर युग में भी कबीर परमात्मा करुणामय ऋषि नाम से अवतरित थे।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कबीर जी ने जगन्नाथ मंदिर तैयार करवाया
एक दिन कबीर परमात्मा संत रुप में राजा के पास आये और कहा कि हे राजन! अब तुम मंदिर बनवाओ तुम्हें सफलता अवश्य मिलेगी, मैं तुम्हारे साथ हूँ। राजा ने कहा कि हे संत जी, जब भगवान श्री कृष्ण जी समुद्र के तीव्र वेग को नहीं रोक पाये तो आप क्या कर पाओगे?
कबीर परमेश्वर ने उत्तर दिया कि मुझे उस पूर्ण परमेश्वर की शक्ति प्राप्त है जिसने असंख्य ब्रह्मांडों की रचना की है तथा वह समरथ प्रभु असंभव को भी संभव कर सकता है। वह सर्व शक्तिमान प्रभु ही असंभव को संभव करने का सामर्थ्य रखता है, यह अन्य देवता नहीं।
लेकिन राजा ने कबीर जी की बात नहीं मानी। कबीर जी ने अपना पता बताते हुए कहा कि राजन जब भी जगन्नाथ मंदिर बनवाने का मन बने तो मेरे पास आ जाना। कुछ दिन पश्चात श्री कृष्ण जी ने राजा को स्वपन में कहा की वह संत कोई साधारण नहीं है। वह सर्व शक्तिमान है वह संत जगन्नाथ मंदिर अवश्य बनवा देगा, उससे याचना करो। फिर इंद्रदमन ने कबीर जी से विनती की और कबीर परमात्मा ने जगन्नाथ मंदिर निर्माण शुरु करवा दिया। समुंद्र मंदिर तोड़ने के लिए बड़े क्रोध से उफनकर आता और कबीर जी की शक्ति के सामने विवश होकर थम जाता। समुद्र बार-बार मंदिर तोड़ने की कोशिश करता लेकिन कबीर परमात्मा अपना हाथ ऊपर को उठाते और अपनी शक्ति से समुंद्र को रोक देते। समुद्र कबीर जी से याचना करने लगा कि मैं आपके समक्ष निर्बल हूं, आप से नहीं जीत सकता। लेकिन मैं अपना प्रतिशोध कैसे लूं कृपया कुछ उपाय बताएं? तब परमेश्वर कबीर जी ने द्वारिकापुरी को डुबोकर अपना गुस्सा शांत करने का विकल्प समुद्र को बताया। द्वारिका उस समय खाली पड़ी थी।

जिस स्थान पर कबीर परमात्मा ने समुंद्र को रोका था वहाँ पर आज भी एक गुम्बद यादगार के रूप में स्थापित है जहां वर्तमान में महंत रहता है।

जगन्नाथ मंदिर में मूर्तियों की स्थापना क्यों हुई?

इसी दौरान नाथ परंपरा के एक सिद्ध महात्मा वहां आये और राजा से कहा कि मूर्ति बिना मंदिर कैसा? आप चंदन की लकड़ी की मूर्ति बनाओ और मंदिर में स्थापित करो। राजा ने तीन मूर्तियां बनवाई जो बार-बार टूट जाती थी। इस तरह तीन बार मूर्ति बनवाई और तीनों बार मूर्तिया खंड हो गई तो राजा फिर से चिंतित हुआ। सुबह जब राजा दरबार में पहुँचा तो कबीर परमात्मा एक मूर्तिकार के रुप में आये और राजा से कहा कि मुझे 60 साल का अनुभव है, मैं मूर्तियां बनाउंगा तो मूर्तिया नहीं टूटेंगीं। मुझे एक अलग से कमरा दे दो जिसमें मैं मूर्तियां बनाउंगा और जब तक मूर्तियां नहीं बन जाती कोई भी कमरा ना खोले। राजा ने वैसा ही किया।

जगन्नाथ मंदिर में मूर्तियों के हाथ-पाव की उंगलियां अधूरी क्यो रह गई
उधर कुछ दिन बाद वह नाथ जी फिर आए और उनके पूछने पर राजा ने पूरा वृतांत बताया तो नाथ जी ने कहा कि पिछले 10-12 दिन से वह कारीगर मूर्ति बना रहा है, कहीं गलत मूर्तियां ना बना दे। हमें मूर्तियों को देखना चाहिये, यह सोचकर कमरे में दाखिल हुए तो कबीर परमात्मा गायब हो गये। तीनों मूर्तियां बन चुकी थी लेकिन बीच में ही व्यवधान उत्पन्न होने से तीनों मूर्तियों के हाथ और पांव की ऊँगलियां अधूरी रह गई। इस कारण मंदिर में बगैर ऊँगलियों वाली मूर्तियां ही रखी गईं।

जगन्नाथ मंदिर छुआछात से मुक्त हुआ और मूर्तियां कबीर जी के रूप में बदल गई
कुछ समय उपरांत जगन्नाथ पुरी मंदिर में मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा करने के लिए कुछ पंडित मंदिर में पहुँचे। मंदिर के द्वार की ओर मुंह करके कबीर परमात्मा खड़े थे। पंडित ने कबीर परमात्मा को अछूत कहते हुए धक्का दे दिया और मंदिर में प्रवेश किया। अंदर जाकर देखा तो हर मूर्ति कबीर परमात्मा के स्वरुप मे तब्दील हो गई थी और यह देखकर पंडित हैरान थे। बाद में उस पंडित को कोढ़ हो गया जिसने कबीर परमात्मा को धक्का देकर अछूत कहा था। लेकिन दयालु कबीर परमात्मा जी ने बाद में उसे ठीक कर दिया। उसके बाद जगन्नाथ पुरी मंदिर में दोबारा छुआछात नहीं हुई।

परमेश्वर कबीर जी ने सिद्ध कर दिया कि उनसे अधिक समर्थ असंख्य ब्रह्मांडों में कोई नहीं
कबीर परमात्मा ने यहाँ सिद्ध करके बताया कि वह समर्थ है और ब्रह्मा, विष्णु, महेश से ऊपर की शक्ति है। कबीर परमात्मा चारों युग में सतलोक से गति करके आते हैं सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेता में मुनिंद्र नाम से, द्वापर में करुणामय नाम से और कलयुग में अपने असली नाम कबीर (कविर्देव) नाम से आते हैं और यही सत्य वर्तमान में भी बंदीछोड़ सतगुरु रामपालजी महाराज ने बताया है कि आत्मकल्याण तो केवल पवित्र गीता जी व पवित्र वेदों में वर्णित तथा परमेश्वर कबीर के द्वारा दिये गये तत्वज्ञान के अनुसार भक्ति साधना करने मात्र से ही सम्भव है, अन्यथा शास्त्र विरुद्ध साधना होने से मानव जीवन व्यर्थ हो जाएगा।
श्री जगन्नाथ के मन्दिर में प्रभु कृष्ण के आदेशानुसार पवित्र गीता जी के ज्ञान की महिमा का गुणगान होना ही श्रेयकर है तथा जैसा श्रीमद्भगवत गीता जी में भक्ति विधि है उसी प्रकार साधना करने मात्र से ही आत्म कल्याण संभव है, अन्यथा जगन्नाथ जी के दर्शन मात्र या खिचड़ी प्रसाद खाने मात्र से कोई लाभ नहीं क्योंकि यह क्रिया श्री गीता जी में वर्णित न होने से शास्त्र विरुद्ध हुई जिसका प्रमाण अध्याय 16 मंत्र 23, 24 में है।



JAGANNATH 👇 


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Monday, June 1, 2020

कबीर प्रकट दिवस 2020: परमेश्वर कबीर साहेब जी की लीलाएं


कबीर प्रकट दिवस 2020: परमेश्वर कबीर साहेब जी की लीलाएं 

भारत एक ऐसा देश है जिसमे अनेकों ऋषिओं और मुनियों का जन्म हुआ। इस कारण भारत को ऋषियों, मुनियों की धरती भी कहा जाता है। उन्हीं में से एक हैं कबीर साहेब। इतिहास के स्वर्ण काल यानी भक्तिकाल के महत्वपूर्ण सन्त। जी हाँ वही कबीर साहेब जो काशी में जुलाहे के रूप में काम करते थे। कबीर साहेब केवल सन्त मात्र नहीं बल्कि पूर्ण परमात्मा हैं। कबीर साहेब के दोहे तो आपने पढ़े ही होंगे, लेकिन आज हम आपको कबीर साहेब जी के जीवन और लीलाओं के बारे में बतायेंगे।

कबीर जी का जन्म कब और कहां हुआ था?

वैसे तो हमारे शास्त्रों में प्रमाण है कि कबीर साहेब चारों युगों में आते हैं। जैसे सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेता युग में मुनीन्द्र नाम से, द्वापर युग में करुणामय नाम से और कलियुग में वास्तविक नाम कबीर (कविर्देव) से वे इस मृत मंडल में जीवों का उद्धार करने आते हैं। परमेश्वर कबीर (कविर्देव) वि.सं. 1455 (सन् 1398) ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को लहरतारा तालाब काशी (बनारस) में एक कमल के फूल पर ब्रह्ममहूर्त में एक नवजात शिशु के रूप में प्रकट हुए।
जिनको नीरू-नीमा नामक जुलाहा दम्पति उठाकर अपने घर ले गए। नीरू और नीमा वास्तव में अच्छे और ईश्वर से डरने वाले ब्राह्मण थे जिनकी अच्छाई नकली और आडम्बरी ब्राम्हणों से सहन नहीं हई और इसका फायदा मुस्लिमो ने उठाया और ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन कर दिया।

कबीर प्रकट दिवस 2020 में कब है?

हर वर्ष ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को कबीर प्रकट दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष 5 जून को इसे मनायेंगे। यही नहीं इस दिन कबीर साहेब की लीलाओं को भी याद किया जाता है। उनकी शिक्षाओं पर चलना आज मानवजाति के लिए बहुत आवश्यक है।

कबीर साहेब जी के दोहे हिंदी में

वैसे तो हमें कबीर साहेब के दोहे कहीं न कहीं लिखे मिल ही जाते हैं, आपने देखा होगा स्कूल, कॉलेज आदि की दीवारों पर कबीर साहेब के दोहे लिखे होते हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि कबीर साहेब के दोहों में ज़िंदगी के हर पहलू को बहुत खुबसूरती से पेश किया गया है। उनमे से कुछ दोहे:-

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय |

कबीर परमेश्वर जी
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ||

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय ||

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप ,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप ||

कबीर साहेब की लीलाएं
कबीर साहेब आज से तकरीबन 600 वर्ष पहले इस मृत लोक में आये थे। वैसे तो वह हर युग में आते हैं, लेकिन कलयुग में अपने वास्तविक नाम कबीर से आये थे। उस वक़्त न तो संचार के साधन थे, न कोई परिवहन होते थे आपको यह जानकर हैरानी होगी कि फिर भी उस वक़्त उनके 64 लाख शिष्य हुए थे । अब आप सोच रहे होंगे कैसे? तो चलिए हम आपको बताते हैं उन्होंने यह कैसे किया।

कबीर साहेब का कमल के फूल पर प्रकट होना
सबसे पहले तो उनका लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर प्रकट होना ही अपने आप में एक हैरानी की बात है। कमल के पुष्प पर वेदों के अनुसार वे अपने वास्तविक प्रकाश को कम करके आए।

कवांरी गाय का दूध पीने की लीला
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वेदों में लिखा है कि परमेश्वर जब अवतार लेता है तो कवांरी गाय का दूध पीता है। कबीर साहेब को पाकर नीरू नीमा बड़े ही खुश थे लेकिन जब लगभग 23 दिन तक बालक रूपी कबीर साहेब ने कोई आहार नहीं किया तो नीमा ने रोरो कर बुरा हाल कर लिया। ये दम्पत्ति शिवभक्त थे इन्होंने अपने इष्ट देव को याद किया। उधर शिव जी के भीतर कबीर साहेब ने प्रेरणा की और वे साधु रूप में घर आये। नीरू नीमा को उन्होंने कुंवारी गाय लाने को कहा और फिर वह दूध कबीर साहेब ने पिया।

कबीर साहेब का नामकरण

सारा काशी कबीर साहेब सरीखे सुंदर सलोने बालक को देखने उमड़ आया। ऐसा बालक कहीं न देखा था। वह घड़ी आई जब कबीर साहेब का नामकरण होना था । काज़ी अपनी किताबें ले आये और अपने तरीके से नाम खोजने लगे। पुस्तक के सारे अक्षर कबीर कबीर हो गए और तब कबीर साहेब ने कहा कि “मैं ही अल्लाहु अकबर कबीर हूँ। मेरा नाम कबीर होगा।” और इस तरह से कबीर साहेब का नामकरण उन्होंने स्वयं किया।

सुन्नत संस्कार की लीला

जैसा कि हम बता चुके कि नीरू और नीमा का ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन मुस्लिम धर्म मे किया गया। वह घड़ी आई जब काज़ी कबीर साहेब के सुन्नत संस्कार के लिए आये। सुन्नत संस्कार के समय कबीर साहेब ने कई लिंग एकसाथ दिखा दिए। और उसी बालक रूप में कहा कि इस्लाम मे तो एक लिंग का सुन्नत होता है आप किसका करोगे? बस इतने में काज़ी डरकर भाग खड़े हुए।

काटी हुई गाय को जिंदा करना

Divine Play of Lord Kabir
सिकन्दर लोधी ने शेख तकी के कहने पर एक गर्भवती गाय काटी और कबीर साहेब को बुलाकर कहा कि आप इसे जिंदा कर दो तो हम मान लेंगे कि आप अल्लाह हैं। कबीर साहेब ने तुरंत ही वह गाय बछड़े सहित जिंदा कर दी और माता स्वरूप गाय न काटने के लिए कहा।

दिल्ली के राजा सिकन्दर लोधी के जलन का रोग ठीक करना

एक बार दिल्ली के राजा सिकन्दर लोधी को जलन का रोग हो गया, सभी काज़ी मुलाओं ने कोशिश की लेकिन ठीक नहीं हुआ। सिकन्दर लोधी काशी के नरेश वीर सिंह बघेल को साथ लेकर कबीर जी से मिलने पहुँच गए। रामानन्द जी ने उन्हें देखकर टिप्पणी की तो सिकन्दर लोधी ने तलवार से गुस्से में रामानंद जी की गर्दन काट डाली।

इतने में कबीर साहेब भी आ गए, कबीर साहेब को देखते ही वीर सिंह बघेल उनको दंडवत प्रणाम करने लगा तो उसको देखकर सिकंदर लोधी ने भी मुकुट समेत प्रणाम किया, जब कबीर साहेब ने दोनों के सिर पर आशीर्वाद के लिए हाथ रखा तो सिकन्दर लोधी का जलन रोग खत्म हो गया। सिकन्दर लोधी इस चमत्कार को देखकर फूट- फूट कर रो पढ़ा।

रामानंद जी को जीवित करना
कबीर साहेब कुटिया के अंदर गए, रामानंद जी का शव देखा तो सिर्फ इतना ही कहा था कि गुरुदेव उठिए आरती का समय हो गया। कबीर साहेब के इतना कहते ही रामानंद जी धड़ सर से जुड़ गया और रामानंद जी जीवित हो गए। इस चमत्कार को देखकर सभी हैरान हो गए, सिकंदर लोधी ने कबीर साहेब से नाम-दीक्षा ले ली।

कमाल को जीवित करना

Divine Play of Lord Kabir
जब सिकंदर लोधी दिल्ली पहुंचा तो उसने काशी में हुए चमत्कार के बारे में अपने धर्म गुरु शेखतकी को बताया तो वह ईर्ष्या की आग में जल उठा। उसने यह शर्त रख दी कि यदि वह सच में अल्लाह का रसूल है तो किसी मुर्दे को जिंदा करके दिखाये। जब यह बात कबीर साहेब को पता चली तो उन्होंने कहा उन्हें मंजूर है। सभी नदी किनारे पहुँच गए , अभी थोड़ा ही समय हुआ था कि सबने देखा किसी लड़के का मृतक शव पानी मे बहता हुआ आ रहा था। कबीर साहेब ने वहाँ किनारे पर खड़े होकर सिर्फ अपने वचन से ही उस लड़के को जीवित कर दिया। सबने कहा कबीर साहेब जी ने कमाल कर दिया तो लड़के का नाम भी कमाल रख दिया।

कमाली को जीवित करना

लेकिन इससे भी शेखतकी को संतुष्टि नहीं हुई, उसने दूसरी शर्त रख दी कि अगर कबीर सच में अल्लाह की जात है तो मेरी कब्र में दफन बेटी को जिंदा करके दिखाये। कबीर साहेब ने वो भी मान ली, सिकन्दर लोधी ने सभी तरफ मुनादी करवा दी कि कबीर साहेब शेखतकी की बेटी को जिंदा करेंगे। कबीर साहेब ने निर्धारित समय पर लड़की को अपनी वचन शक्ति से शेखतकी की बेटी को जिंदा कर दिया। सभी कबीर परमात्मा की जय जय कार करने लगे। उस लड़की ने अपने पिछले जन्मों के बारे में और कबीर साहेब के बारे में बताया। उसका नाम कमाली रख दिया गया। बहुत से लोगों ने कबीर की शरण ग्रहण की।

उबलते कड़ाहे में संत कबीर साहेब को डालना
कबीर जी की लोकप्रियता को देखकर शेखतकी ईर्ष्या की आग में जलने लगा। उसने फिर कहा कि कबीर साहेब को उबलते तेल के कढ़ाए में डाल दो, अगर बच गए तो में मान लूंगा कि यह अल्लाह है। जैसे-जैसे शेखतकी कहता गया सिकन्दर लोधी वैसे ही करता गया। कबीर साहेब उबलते तेल के कड़ाहे में बैठ गए। सबने देखा कबीर जी ऐसे बैठे थे जैसे तेल ठण्डा हो। तेल ठंडा है या गर्म ये देखने के लिए सिकंदर लोधी ने अपनी उंगली डाली तो वह पूरी तरह जल गई। सभी श्रोता बैठे यह सब देख रहे थे, सभी ने कबीर साहेब की जय जय कार की। उस वक़्त बहुत से लोगों ने कबीर भगवान से दीक्षा ग्रहण की।

परमेश्वर कबीर जी द्वारा काशी शहर में धर्मभण्डारा

Saturday, May 30, 2020

शेखतकी द्वारा कबीर परमेश्वर के साथ 52 बार बदमाशी करना

शेखतकी द्वारा कबीर परमेश्वर जी के साथ 52 बदमाशी करना

कबीर साहेब जी को 52 कसनी (52 बदमाशी) दी गयी। फिर भी उनका कुछ नहीं हुआ क्योंकि कबीर साहेब जी अविनाशी थे।लगभग 600 साल पहले जब परमेश्वर कबीर साहेब जीवों का उद्धार करने के लिए धरती पर आये तो पाखंडवाद का विरोध किया और सद्ग्रंथो में वर्णित सत्यभक्ति का प्रकाश फैलाया। हिन्दु धर्म में प्रचलित पाखंड पूजाएं, शास्त्र विरुद्ध साधनाओं और मुस्लिम धर्म में प्रचलित जीव हत्या का कबीर परमात्मा ने पुरजोर विरोध किया। उस समय परमात्मा के 64 लाख शिष्य हुए। दोनों धर्मों के और सभी वर्गों के व्यक्तियों ने परमेश्वर कबीर साहेब से उपदेश प्राप्त किया क्योंकि परमेश्वर कबीर साहेब के आशीर्वाद से सभी के दुखों का अंत हो जाता था। उन्ही शिष्यों में से एक था दिल्ली का सुल्तान सिकंदर लोधी।
सिकंदर लोधी के जलन का रोग था जिसका इलाज वो हर पीर फ़कीर से करवा कर थक चुका था। उसका वो रोग परमात्मा कबीर साहेब जी की शरण में आने के बाद ही ठीक हुआ था। उसी के सामने कबीर परमात्मा ने स्वामी रामानंद जी और एक मृत गाय को जीवित किया थ। तब से सिकंदर लोधी, कबीर साहेब जी को अल्लाह मानता था। इस कारण से सिकंदर लोधी का धार्मिक गुरु शेख तकि कबीर साहेब से ईर्ष्या करता था । कबीर साहेब को अपने रास्ते से हटाने के लिए उसने कई बार उन्हें मरवाने की नाकाम कोशिश की।
52 कसनी (बदमाशी) में से मख्य यातनाएं
शेखतकी ने कबीर साहेब जी को 52 तरह की यातनाएं दीं थी, जिनमें से मुख्य निम्नलिखित है.

 उबलते तेल के कड़ाहे में डालना
 kabir sahib in boil oil


शेख तकि ने हज़ारों मुसलमानों को इकठ्ठा करके कहा कि हम कबीर को उबलते तेल की कढ़ाही में डालेंगे। अगर ये नहीं मरा तो मान लेंगे कि ये अल्लाह है। तेल कि कढ़ाही को उबालकर कबीर साहेब को बुलाया गया। कबीर परमात्मा उबलते तेल के कढ़ाहे में स्वयं ही विराजमान हो गए। सभी इस इंतज़ार में थे कि कबीर साहेब जल जाएंगे पर परमात्मा खौलते हुए तेल में आराम से बैठे रहे और सबको दर्शा दिया कि वो अविनाशी हैं पर शेख तकि कबीर साहेब से माफ़ी मांगने कि बजाए उनसे और ज्यादा ईर्ष्या करने लगा और फिर उसने कबीर साहेब को मरवाने के लिए अगली योजना बनाई।

 गहरे कुएं में डालना 👇

अपनी अगली योजना के तहत शेख तकि कबीर साहेब को बांध कर ले गया और ले जा कर एक गहरे कुएं में डलवा दिया। उसके बाद उस कुएं को मिट्टी, गोबर, कांटे आदि डाल कर 150 फ़ीट ऊपर तक भरवा दिया। कबीर साहेब को मृत मानकर शेख तकि सिकंदर लोधी के पास ये खुशखबरी सुनाने के लिए गया। वहां परमात्मा कबीर साहेब को सिकंदर लोधी के पास ही आसन पर बैठा देखकर शेख तकि गुस्से से जल भुन गया फिर भी कबीर जी को परमात्मा नहीं माना।

तलवार से कटवा कर मारने की कोशिश
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गुस्से में शेख तकि ने कबीर साहेब को तलवार से कटवा कर टुकड़े टुकड़े करने की ठानी। इस कुकृत्य के लिए शेख तकि ने कुछ गुंडे तैयार किये। जब परमेश्वर कबीर साहेब जी रात्रि में सोने की लीला कर रहे थे उस समय शेख तकि उन गुंडों के साथ परमात्मा की कुटिया में आया और कबीर परमात्मा पर तलवारों से अंधाधुंध वार किये। जब कबीर साहेब को मृत जानकार सभी वहां से जाने लगे तभी कबीर परमेश्वर उठ खड़े हुए। उनको भूत समझकर सभी गुंडे और शेख तकि डर कर वहां से भाग गए।

 खूनी हाथी से मरवाने की चेष्टा

इसी तरह कबीर परमात्मा को ख़त्म करने के लिए हिन्दू और मुस्लिम धर्मगुरुओं ने बहुत से प्रयास किये। बादशाह सिकंदर लोधी से उनकी झूठी शिकायतें करके उनको कई बार सज़ा करवाने की कोशिश की गयी। ऐसे ही एक बार सिकंदर लोधी ने कबीर साहेब को हाथी से कुचलवाने की सजा दी। कबीर परमात्मा जी के हाथ पाँव बांध कर उन्हें एक मदोन्मत खूनी हाथी के आगे डाल दिया गया।
पर जब हाथी कबीर परमात्मा को मारने के लिए आगे बढ़ा तो उसे परमात्मा के स्थान पर एक बब्बर शेर दिखाई दिया। सिकंदर लोधी को भी परमात्मा का विराट रूप दिखाई दिया। हाथी अपनी जान बचा कर भाग गया तथा राजा भी थर्र थर्र काँपता हुआ नीचे आया और कबीर परमेश्वर को दंडवत प्रणाम किया।

 गंगा में डुबो कर मारने की कोशिश
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जब ये प्रयास भी सफल न हुआ तो कबीर जी को गंगा में डुबो कर मारने की कोशिश की गयी। उनके हाथ पांव बांध कर उन्हें गंगा में डाल दिया गया पर सर्व शक्तिमान कबीर परमेश्वर जल के ऊपर आराम से बैठे रहे। जब कबीर साहेब नहीं डूबे तो चार पहर तक उनके ऊपर गोलियां और तोपों की बारिश की गयी। सबने अपने परम पिता परमात्मा पर पत्थर बरसाए। पर परमेश्वर कबीर साहेब को कोई हानि नहीं पहुंची। तब कबीर साहेब वहां से अंतर्ध्यान हो गए और अपनी कुटिया में प्रकट हो गए।
इस प्रकार परमात्मा कबीर साहेब को 52 कसनी दी गयी अर्थात उन्हें 52 बार मरवाने की कोशिश की गयी पर परमात्मा को कोई हानि नहीं पहुंची क्योंकि परमेश्वर कबीर साहेब अजर अमर अविनाशी हैं।

वेद गवाही देते हैं कि पूर्ण परमात्मा कविर्देव(कबीर साहेब) राजा के समान दर्शनीय हैं। वे सतलोक में रहते हैं और अपनी अच्छी आत्माओं और दृढ़ भगतों को सत्य भक्ति का ज्ञान करवाने के लिए वो परमात्मा स्वयं ही पृथ्वी पर प्रकट होते हैं। उसी प्रकार परमात्मा कबीर साहेब 600 साल पहले सशरीर पृथ्वी पर आये थे और 120 साल तक पृथ्वी पर सतभक्ति का ज्ञान देकर सशरीर ही वापिस चले गए थे। मगहर में आज भी इस घटना की यादगार बनी हुई है।

वर्तमान में कबीर साहेब के नुमाइंदे संत रामपाल जी महाराज जी हैं। उन्होंने कबीर साहेब द्वारा दिया गया दिव्य आध्यात्मिक ज्ञान उजागर कर दिया और जिस तरह से कबीर साहेब को परेशान किया गया उसी तरह से आज संत रामपाल जी महाराज को परेशान किया जा रहा है लेकिन पूर्ण गुरु होने के कारण उनका कुछ कोई नहीं बिगाड़ सका और उनका ज्ञान लगातार फैल रहा है। आप भी संत रामपाल जी महाराज के दिव्य आध्यात्मिक ज्ञान को समझने के लिए जरूर देखें साधना TV रात 7:30 pm से.

पुस्तक लिंक👇
https://www.jagatgururampalji.org/gyan_ganga_hindi.pdf
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Thursday, May 28, 2020

#GodKabir_Comes_In_4_Yugas

#GodKabir_Comes_In_4_Yugas
🌸 सतयुग 👇
सतयुग में मनु समझाया,काल वश रहा मार्ग नहीं पाया। 
उल्टा दोष मोही पर लगाया, वामदेव मेरा नाम धराया।।

🌸 त्रेतायुग 👇
त्रेता में नल नील चेताया,लंका में चन्द्र विजय समझाया। 
सीख मन्दोदरी रानी मानी, समझा नहीं रावण अभिमानी।।

🌸 द्वापर युग 👇
ऊवाबाई बकें ब्रह्मज्ञानी, तत्वज्ञान की सार न जानी। 
द्वापर पाण्डव यज्ञ पूर्ण किन्हीं, हो गई थी सबन की हीनि।।

🌸 कलयुग 👇
अब मैं कलयुग में लीन्हा अवतारा,काशी नगर है अस्थान हमारा। 
कबीर नाम है मेरा भाई,ऋषि रामानन्द से दिक्षा पाई।।

🍁 सतगुरु पुरुष कबीर हैं, चारों युग प्रवान।
🍁 झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।।

➡️ कबीर प्रकट दिवस - 5 जून 2020

Chhath Puja 2020

पूजा पर जानिए यथार्थ भक्ति और ज्ञान के बारे में पूजा 2020: वैसे तो भारत में बहुत से पर्व मनाये जाते हैं, उनमें छठ पूजा सूर्योपासना का एक लोक...